Kundalini Puja Date 5th February 1990 : Place Hyderabad Puja Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 07 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 08 - 11 Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आप सब लोगों को मिल के बड़ा आनन्द आया। और मुझे इसकी कल्पना भी नहीं थी कि इतने सहजयोगी हैद्राबाद में हो गये। एक विशेषता हैद्राबाद की है कि यहाँ सब तरह के लोग आपस में मिल गये हैं। जैसे कि हमारे नागपूर में भी। मैंने देखा है कि हिन्दुस्थान के सब ओर के लोग नागपूर में बसे हुए हैं। और इसलिये वहाँ पर लोगों में जो संस्कार है उसमें बड़ा खुलापन है। और एक दूसरे की ओर देखने की दृष्टि भी बहुत खुली हुई है। अब हम लोगों को सहजयोग की ओर नये तरीके से मुड़ना है तो बहत सी बातें ऐसी जान लेनी चाहिये की सहजयोग सत्य स्वरूप है और हम सत्यनिष्ठ हैं। जो कुछ असत्य है, उसे हमें छोड़ना है। कभी भी असत्य का छोड़ना बड़ा कठिन हो जाता है। क्योंकि बहुत देर तक हम किसी असत्य के साथ जुटे रहते हैं, फिर कठिन हो जाता है कि उस असत्य को हम कैसे छोड़ें। लेकिन असत्य हम से चिपका रहेगा, तो हमें शुद्धता नहीं आ सकती। क्योंकि असत्यतता एक भ्रामकता है और उस भ्रम से लड़ने के लिए हमें एक निश्चय कर लेना चाहिए, कि जो भी सत्य होगा उसे हम स्वीकार्य करेंगे और जो असत्य होगा उसे हम छोड़ देंगे। इसके निश्चय से ही, आपको आश्चर्य होगा, कि कुण्डलिनी स्वयं आपके अन्दर , जो कि जागृत हो गयी है, इस कार्य को करेगी और आपके सामने वो स्थिती ला खडी करेगी की आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है और असत्य क्या है। यही नहीं, और आपके अन्दर वो शक्ति आ जाएगी, जिससे | आप सिर्फ सत्य को ही प्राप्त करना चाहेंगे और जितना भी असत्य आपको दिखायी देता, उसे छोड़ देंगे। अब बहुत सी बातें जो सहजयोग में बतायी जाती हैं वो बड़े सोच-समझ कर के और आप लोगों के संस्कारों का विचार कर के, कि जिससे आप किसी तरह से दु:खी न हो समझायी जा सकती हैं । लेकिन इस समझाये जाने में भी हो सकता है, कि आप सोचें कि ये बात ठीक नहीं है, वो बात ठीक नहीं। बहुत से शास्त्रों में जो बातें लिखी गयी हैं वो अधिकतर सत्य है। पर कहीं कहीं ऐसा देखा जाता है, कि बीच बीच में बहुत सी गलत धारणायें भी बढ़ती हैं और इन गलत धारणाओं की वजह से हम उसी को सत्य मान के चल रहे हैं। जैसे कि ज्ञानेश्वरी में ऐसा लिखा गया है, कि जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो आप हवा में उड़ने लग जाते हैं और आप पानी पे चलने लग जाते हैं और आप को बहुत सात समंदर के दूर की बातें दिखायी देती है। अब ये अशक्य है। क्योंकि ग्यानेश्वरजी एक संत थे, महान संत थे। हम लोगों को उस पर सोचना चाहिये, कि संत लोग जनहिताय, जनसुखाय संसार में आ गये। वो इस तरह की बातें मनुष्य को सिखा कर कौनसा सुख देने वाले हैं? उससे कौनसा आराम होने वाला है कि आप हवा में उड़ने लग गये, तो क्या विशेष हो गये? या अगर आप पानी पे चलने लग जाये कि विशेष हो जाये ? लेकिन जिस चीज़ से हमको असल में लाभ होता है, वो है हमारे अन्दर का परिवर्तन और हमारा परमात्मा से संबंध होना। पर उसी ग्यानेश्वरी में लिखा गया है, कि पसायदान, याने ये की वो कहते हैं, कि अब विश्व के जो आत्मा है, विश्वव्यापक जो है उन्होंने खुश होना चाहिए। क्योंकि मैंने वाणी का यज्ञ किया है और अब ऐसा पसायदान दें, ऐसा चैतन्य दें, जिससे सारे संसार में परिवर्तन आ जाये। और सारी बात Original Transcript : Hindi परिवर्तन की लंबी चौड़ी हो। तो ये समझ लेना चाहिए कि जो पहली बात थी वो किसी ने उसमें भर दी है । क्योंकि ऐसी बात ग्यानेश्वरजी कभी लिख ही नहीं सकते, कि आप हवा में उड़ेंगे, आप पानी पे चलेंगे। इससे क्या लोगों का फायदा होने वाला! वैसे ही हम लोग हवा में उड़ रहे हैं। वैसे ही हम लोग जहाजों में चल रहे हैं। और वैसे ही दूरदर्शन से हम देखते हैं। इसमें कुण्डलिनी की क्या जरूरत है। सो, कुण्डलिनी से जो कार्य होने वाला है, उसको समझना चाहिए और जिस तरह से हर एक ग्रंथ को हम पढ़ते हैं, तो इसमें ये सोचना चाहिए कि इसका विचार जो है, वो सत्य को पकड़ के है या नहीं। इसी कारण, गीता में भी, हर धर्मशास्त्रों में गलत चीजें लिख दी। जैसे कि गीता में लिखा हआ है, कि आपका जन्म जिस जाति में होता है. वही आपकी जाति हो जाती है। कभी हो ही नहीं सकता। क्योंकि जिसने गीता लिखी, वो कौन थे? व्यास। और व्यास किस के लड़के थे आप जानते हैं, कि एक धीवरनी के, एक मछिहारनी के लड़के थे, जिनकी शादी भी नहीं हुई थी। ऐसे की वो बेटे थे, वो है व्यास। वो ऐसा कैसे लिखेंगे, कि आपकी जो जन्मसिद्ध जाति होगी वही जाति हो जाएगी। लेकिन कहा गया है, 'या देवी सर्वभूतेषु, जातिरूपेण संस्थिता', माने सब के अन्दर बसी हुई उसकी जाति है। जाति का मतलब होता है, जो हमारे अन्दर जन्मजात, हमारे अन्दर जो एक तरह का रुझान है, अॅप्टिट्यूड है, हमारे रुझान का, हम किस ओर उलझे हुए हैं। बहुत से लोग हैं जो कि पैसे को खोजते रहते हैं । बहुत से लोग हैं जो कि बड़ी सत्ता को खोजते रहते हैं। लेकिन ऐसे भी बहत से लोग हैं जो कि परमात्मा को खोजते हैं। जिसकी जो जाति, माने जिसका जो रुझान है, जिसका अॅप्टिट्यूड है, वो उसके अन्दर एक बसी हुई अॅप्टिट्यूड है। इसका मतलब ये है, कि सहजयोग में वही लोग आयेंगे, जो परमात्मा को खोजते हैं, जो ब्रह्म को सोचते हैं, और जो इसमें ध्यान देते हैं कि हमें परम को प्राप्त करना है और दुनियाई चीज़ों में क्या करना है। पहले ऐसे ही लोग आयेंगे। प्रथम में ऐसे ही लोग आयेंगे । जो कि वास्तविक में सोचते हैं, कि किसी तरह से परमात्मा को प्राप्त कर ले। इस परमात्मा चीज़ को जान ले या इस आत्मा में हम लोग समा जाए। इस तरह से जो लोग सोचते हैं, किसी भी तरह से, किसी भी पुस्तक को पढ़ने से, या किसी संत-साधुओं के साथ रहने से, किसी गुरुजन के साथ रहने से, जो लोग इस तरह का सोचते है वो पहले सहजयोग में आता है। इसलिये आप देखियेगा कि सहजयोग की प्रगति धीरे होती है। और सब चीजों की प्लास्टिक प्रगती है। हजारों आदमी आप पा लें, कि जो किसी गुरु के पीछे में दौड़ेंगे। लेकिन वो छोड़ देते हैं, उनको कोई लाभ नहीं होता। उनको पैसा देते हैं, किसी तरह से ठीक हो जाते हैं। लेकिन हमको ये सोचना चाहिए कि जो सच्चाई होती है और जो जीवंत चीज़ होती है, वो धीरे- धीरे पनपती है। एकदम ज्यादा नहीं पनप सकती। आपको अगर एक वृक्ष में फूल आने हैं, तो एक- दो ही फूल आते हैं, फिर चार-पाँच फूल आते हैं, फिर धीरे- धीरे उसमें अनेक फूल आ जाते हैं। तो को जब सहजयोग की ओर रुझान हो जाती है और वो सहजयोग में आ जाता है, तो उसको कभी- कभी बड़ा द:ख होता है, और उसे लगता है कि इतने धीरे-धीरे सहजयोग क्यों बढता है? सहजयोग की प्रगती इतने धीरे क्यों होती है? फिर उसकी | मनुष्य वजह आप समझ गये कि ये जीवंत चीज़ है और इसमें किसी पे जबरदस्ती हम नहीं कर सकते। हम किसी को कहें कि आप पार हो गये। तो नहीं हो सकते। ये होना पड़ता है। जब तक ये होना नहीं होगा, जब तक ये बात घटित नहीं 3 Original Transcript : Hindi होगी, तब तक हम नहीं कह सकते, कि ये हो गया। जैसे हमारे साथ एक देवीजी थी, वो गयी अमेरिका। उनका लड़का आया होनोलुलु से तो मुझे कहने लगे कि, 'माँ, इनको आप पार कराओ।' मैंने कहा, 'ये होते नहीं, में क्या करूँ? तुम करा दो पार ।' कहने लगी कि, 'जब आप से नहीं होते तो मैं कैसे करू?' मैंने कहा कि, 'क्या उसको झूठा सर्टिफिकेट दे दें कि ये पार हो गया ?' कहने लगी, 'उससे क्या फायदा होने वाला!' मैंने कहा, 'यही बात है।' इसलिये ये घटित होना पड़ता है और ये सत्य स्वरूप प्राप्त होना चाहिए। अगर ये नहीं हुआ और कोई झूटमूट में ही कहने लगे कि, 'मुझे पार हो गया, बहुत हो गया।' और हर आदमी पार हुआ ऐसा भी नहीं कह सकते। बहुत से लोग नहीं होते हैं। अनेक कारणों से नहीं हो सकते। किसी को कभी ये लगता है कि ऐसे कैसे हो सकता है। ज्यादा तर लोगों में तो ये विचार आता है, कि 'जब तो अब कभी हुआ नहीं, इसके लिये इतनी तपस्या करनी पड़ती थी, हिमालय जाना पड़ता था, ये करना पड़ता था, हमें कैसे होगा?' असल में किसी से कहा जाये कि यहाँ एक हीरा रखा है और आपको मुफ़्त में मिल जायेगा तो सब दौड़ आयेंगे। उसको नहीं छोड़ेंगे। लेकिन जब कहा जाये कि सहज में ही, सस्ते में ही, बगैर पैसे दिये ही आपकी कुण्डलिनी जागृत हो जायेंगी तो लोग विश्वास नहीं करते। क्योंकि अपने आत्मविश्वास में और वो समझ नहीं सकते कि ये समा कौनसी है? ये कौनसी विशेष समा है जिसमें ये चीज़ घटित हो सकती है? तो हमारे लिये क्या सोचना चाहिए कि हम लोग जो हैं आज एक विशेष स्थिति है। हम लोगों ने कुण्डलिनी का अभ्यास नहीं किया हो, उसके बारे में पढ़ा न हो, लिखा न हो और हमारी जागृति हो गयी। और जब जागृति हो गयी है और हमें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, तो ये सोच लेना चाहिए कि अब सब कार्य जो है, वो हम नहीं करने वाले। ये चारों तरफ फैला हुआ परम चैतन्य है, जिस परम चैतन्य ने सारी सृष्टि की रचना की हुई है उसी परम चैतन्य में हम एकाकारिता प्राप्त करते हैं और उस परम चैतन्य का ही ये कार्य है कि वो हमारे सारे कार्य करें। सो, हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं। हम तो अकर्म में ही खड़े हये हैं। जैसे कि आज इसमें (मायक्रोफोन ) कनेक्शन है, आपका मेन से लग गया, तो मैं इसमें बोल रही हूँ तो सुनाई दे रहा है। इसका उपयोग हो रहा है। उसी प्रकार हमारा संबंध उस चारों तरफ फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि, परम चैतन्य से हो जाता है उस वक्त हमें कोई भी फिक्र करने की या किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं। सारी चिंता वही करते हैं। उस पर भी, मनुष्य जब शुरू शुरू में सहजयोग में आता है, तो वो सोचता है कि चलो ये भी कर के देख लें, चलो वो भी कर के देख लें। बहुत तर्क- वितर्क करता है। और सोचता है कि चलो इससे काम बन जायेगा, ऐसा होना चाहिये और उसी चिंता में रहता है। लेकिन धीरे-धीरे वो समझ लेता है, कि 'मेरा' करने कुछ नहीं होगा। लेकिन अगर आप ऐसा सोचें कि, 'मैं कर के देख लेता हूँ।' तो परमात्मा कहते हैं कि, 'अच्छा, कर लो तुमको जो कुछ करना है, करो।' उसको कहते है अल्पधारिष्ट। अल्पधारिष्ट जो है, वो देखता है कि आप एक अल्पधारिष्ट है, चलो इसको कर लें। पर उसके बाद धीरे-धीरे आप में एक पूर्ण विश्वास आ जाता है, कि परम चैतन्य सब कार्य कर रहे हैं। अपने आप स्वयं परम चैतन्य सारे कार्य को दिखा देते हैं और सब कार्य बनते जाते हैं। उसको स्वीकार्य करना चाहिये। किसी भी चीज़ को ऐसा नहीं कहना चाहिये कि ऐसा क्यों है ? 4 Original Transcript : Hindi अब जैसे बताये कि कभी अगर हमारा रास्ता भूल गये और हम किसी और रास्ते से चलें, यही सोचतें हैं कि किस रास्ते से जाना जरूरी था। इसलिये रास्ता भूल गये और इसलिये हम इस रास्ते पर आ गये। फिर कोई सोचता है, कि इस तरह से क्यों हुआ? ऐसा नहीं होना चाहिये। कभी कभी बहुत सारी बातें हमारे समझ में नहीं आती है। बहुत दिनों बाद समझ में आ जाती है, कि ये होना जरूरी था और इसलिये ये चीज़ घटित हो गयी| तब हम लोग एक तरह से उसमें इतमिनान कर लेते है और यही जान लेते हैं कि जो कुछ भी कहा था वो कितने बढिया तरीके से। तो कोई चीज़ हमारे मन के विरोध में हो जाये तो ये नहीं सोचना चाहिये कि परमात्मा ने हमारी मदद नहीं की। परमात्मा ने तो मदद दी है, कि आपके जो मन की जो इच्छा थी वो ठीक नहीं थी। इसलिये जो सही बात होनी चाहिये वो परमात्मा ने आपके लिये कर दी। क्योंकि परमात्मा से ज़्यादा तो हम सोच नहीं सकते। इस परम चैतन्य के कार्य से हम ज़्यादा कार्य तो कर नहीं सकते। इसलिये उसने जो कार्य किये है और उसने जो व्यवस्था की है और वो जो हमारे लिये कर रहे है और जो कुछ हो रहा है, वो सब चीज़ अत्यंत सुंदर है। और किसी भी परिश्रम के बगैर सहज में ही घटित हो जाती है। मुझे बड़ी ही आनन्द की बात है कि हैद्राबाद में इतने सहजयोगी हो गये। अब सहजयोग में, इसके दो अंग हैं, मेरा ऐसा कहना है कि इन दोनों अंगों को सम्भालना चाहिए । एक अंग ऐसा है, जिसमें ध्यान- धारणा आदि करनी चाहिये। घर में अपने, व्यक्तिगत रूप से ध्यान धारणा जरूर करनी चाहिये । और हमारे अन्दर के दोषों को निकालना है। ध्यान-धारणा की जो हम लोगों की प्रणाली है बहुत ही सरल, सहज है। एक सबेरे दस मिनट, शाम को १०- १५ मिनट बैठने से भी ध्यान-धारणा होती है। पहले अपने अन्दर कौन सा दोष है इसे देख लेना चाहिये। बहुत बार लोग ये नहीं समझते कि समझ लीजिये, कोई राईट साइडेड है, कोई लेफ्ट साइडेड है, तो वो उल्टे इलाज करने शुरू हो जाते हैं। इसलिये पहले जान लेना चाहिये कि हमारी कौनसी दशा है? हमारा कौनसा चक्र पकड़ रहा है ? हम कहाँ हैं? ये सब हम लोग जान सकते हैं। आप जब फोटो की ओर ध्यान करेंगे तो आप जान लेंगे कि आपके इस चक्र में दोष है कि उस चक्र में दोष है। उसको पूरी तरह से समझ कर के, उसके ज्ञान के साथ में, उसको आत्मसुविधा लेना चाहिये। उसको सुलझाने के बाद वो व्यक्तिगत हो गया। फिर आपको सामूहिकता में उतरना चाहिये। और सामूहिकता में उतरते वक्त आपको जान लेना चाहिये, अपना हमें दिल खोल देना चाहिये। जिस आदमी का दिल खुला नहीं है, वो सामूहिकता में उतर नहीं सकता। बहुत से लोग संकुचित प्रवृत्ती के हो गये हैं। कारण उन्होंने वो जाना नहीं कि दुनिया कितनी अच्छी है और कितनी हम उसे अच्छे बना सकते हैं। जिसने अच्छी व्यवस्था देखी ही नहीं, जिसने अच्छा सुन्दर सा संसार देखा ही नहीं, उनको विश्वास ही नहीं होता कि असल संसार में वो भी है। इसलिये वो अपने समुचित हृदय से रहते हैं और दुसरी बात उसमें ऐसी होती है, कि जब हम औरों की ओर नजर करते हैं, तो पहले हमें उनके दोष दिखायी देते हैं। जब हम दूसरों के दोष देखने लगते हैं, तो हमारे अन्दर ज़्यादा दोष आ जाते हैं। लेकिन हम उनके गुण देखें, उनकी अच्छाई देखें और उनकी सुन्दरता को देखें, तो हमारे अन्दर भी वो सुन्दरता आ जायेगी और उस आदमी की जो दोष होते हैं वो भी लुप्त हो जायेंगे| जब दूसरा कोई है ही नहीं, जब वो हमारे ही शरीर का एक अंग मात्र है, तो फिर उसमें दोष देखने से क्या फायदा! दोष को हटाना ही चाहिये। और दोष को हटाने का सब से अच्छा तरीका है कि उसको किसी तरह से सुलझा कर प्रेम 5 Original Transcript : Hindi भाव से ही उसको हटाया जाता है। क्योंकि अपना सारा कार्य जो है, वो प्रेम की शक्ति का है और प्रेम ही सत्य है और सत्य ही प्रेम है। जो प्रेम की शक्ति को इस्तेमाल करेगा , वो बहुत ऊँचा उठ जायेगा। हृदय को खोल कर के प्रेम से आपको दूसरों की ओर देखना है। इस तरह से एक तो ये आपका अंग है, जिसमें आप अपने व्यक्तिगत व्यष्टि में प्रगति करते हैं और एक आप समष्टि में प्रगति करते हैं, जो दूसरों के साथ मेलजोल, प्यार हो जाएं। जिसका मेलजोल दूसरों के साथ नहीं बैठता है तो उसको सोच लेना चाहिये कि वो सहज नहीं । जिसका , जो प्रश्न खड़े कर देता है, जिससे लोगों को तकलीफ़ हो जाये, जिससे आपस में प्रेम न बढ़े, आपस में झगड़ा हो जाये, ऐसा आदमी सहज नहीं और ऐसे आदमी से बच के रहना चाहिये। क्योंकि ऐसा आदमी, एक भी आम अगर खराब हो जाये तो सारे आम को खराब कर सकता है। जो आदमी इधर से उधर लगाते जायेगा, इधर से उधर बात करेगा, इसके खिलाफ़ बोलेगा, उसके खिलाफ़ बोलेगा । इसलिये किसी भी सहजयोगी की निंदा सुनना हमारे सहज में एक पाप सा है। क्योंकि उसको सुनने से हमारे कान खराब हो जाते हैं। और उससे हम उस आदमी के प्रति एक तरह से गलत तरीके से कहना चाहिये कि उसके प्रति हमारा जो विचार होता है, वो ठीक नहीं रहता है। आपको दूसरों से जब व्यवहार करना है, तो देखना चाहिये कि हमारे अन्दर कितना औदार्य है। हम कितनी क्षमा कर सकते हैं, हम कितने प्यार से उसे बोल सकते हैं। उनको हम कितने नज़दीक ले सकते हैं । क्योंकि ये सब हमारे असली रिश्तेदार हैं । बाकी की रिश्तेदारी आप तो जानते ही हैं, कि कैसे होती है। लेकिन जो असली रिश्तेदारी है, वो सहजयोग की है और आपको पता होना चाहिये कि चालीस देशों में आपके भाई- बहन बैठे ह्ये हैं। और जब कभी आप उनसे मिलेंगे तो आपकी तबियत खुश हो जायेगी। दूसरी जो स्थिति है, उसमें है सहजयोग का प्यार होना और सहजयोग का प्रचार होना। ये भी अत्यावश्यक है, विशेषत: औरतों के लिये, स्त्रियों के लिये क्योंकि स्त्री जो है शक्तिस्वरूपिणी है । उसको समझ लेना चाहिये कि कौनसा चक्र पकड़ता है। कौन से पैर की उँगली पकड़ी है। उसको कैसे निवारण करना चाहिये। उसमें क्या दोष है। उसे क्या बिमारियाँ हो सकती है। किस तरह से हम लोगों को ठीक कर सकते हैं। कौन से दोषों से हम जान सकते हैं कि कौन से चक्र पकड़े हुये हैं। उसका निवारण कैसे करना चाहिये। आदि जो कुछ भी ग्यान है, कुण्डलिनी के बारे में ग्यान क्या है? आदि सब बैठ कर के, मन कर के, सोच कर के और आपको जान लेना चाहिये। लेकिन अधिकतर लोग सहजयोग में आने के बाद उसके ओर ध्यान नहीं देते। उनको ग्यान नहीं होता है और सहजयोग | करते रहते हैं। तो उसका ग्यान होना अत्यावश्यक है। क्योंकि ऐसे तो दुनिया में बहत से लोग आये। जो कि हम देखते हैं कि पार हैं। बच्चे हैं बहुत सारे, वो भी ऐसे पैदा होते हैं जो सहजी हैं। लेकिन उनको सहज का ग्यान नहीं । तो माँ लोगों को चाहिये कि वो जाने सहज क्या चीज़ है। उससे वो अपने बच्चों को भी समझ जायेंगे और ये भी समझ जायेंगे की कोई बच्चा जो कि सहज में पैदा हुआ है, वो क्यों ऐसा करता है। उसकी क्या बात है। वो समझने के लिये उसका ग्यान होना बहुत अत्यावश्यक है। जिन लोगों को इसका ग्यान नहीं होता है वो समझ नहीं पाते कि क्या बात कर रहे हैं? क्या कर रहे हैं? औरों पे इसका असर नहीं आता है। इसका इसलिये ग्यान होना बहुत जरूरी है। और जो चौथी चीज़ बहुत जरूरी है, सहजयोग का प्रचार। अगर आप एक कमरे में बैठे है और एक दरवाज़ा Original Transcript : Hindi है, यहाँ से अब आपको हवा मिल रही है लेकिन अगर दूसरा दरवाज़ा आपने खोला नहीं, तो हवा का खुला सक्क्युलेशन रुकता है। हवा का प्रवाह है वो रुक जाये। इसी तरह से हम लोग जब दूसरों को सहजयोग से प्लावित करते हैं, उनकी मदद करते हैं, उनको रियलाइझेशन देते हैं, उसका प्रचार करते हैं, उसके बारे में बोलते हैं। अपने रिश्तेदारों को बताते हैं, उनको घर बुला-बुला कर, उनको चाय पिला-पिला कर, ये सहजयोग देते हैं। तब, जब तक आप प्रचार नहीं करेंगे, तब तक आपकी प्रगति नहीं हो सकती। क्योंकि आप जानते हैं कि जब पेड़ बढ़ता है उसकी शाखायें बढ़नी चाहिये और शाखाओं के नीचे उसकी छाया में अनेक लोगों को बैठना चाहिये। नहीं तो ऐसे अनेक पेड़ हैं, पर हम लोग तो वटवृक्ष की तरह हैं और इसलिये हमें चाहिये कि इसके प्रचार में पूरी तरह से सहाय्य करें। उसके लिये जो जो जरूरतें होंगी वो हमें करनी चाहिये। उसकी ओर हमें मुड़ना चाहिये। उसके प्रति हमें पूरी तरह से समर्पित होना चाहिये और अपना पूरा समय हम सहजयोग के लिये क्या कर सकते हैं, हम सहजयोग में कौनसा प्रदान कर सकते हैं? इसमें आप जानते हैं कि पैसा नहीं लिया जाता। पर जैसे कि आपको कार्यक्रम करना है, तो मैंने सुना कि एक ही नागोराव साहब सारा पैसा दे रहे हैं, ये बात अच्छी नहीं है। अभी से आप थोड़े थोड़े पैसे इकठ्ठे कर लें और जब हम आयें तो ऐसा होना चाहिये कि सब को उसमें तन, मन धन से, सब तरह से मदद करनी चाहिये। और उसमें आपको मजा आयेगा। ऐसे हम लोग और तो इकट्ठे करते रहते ही हैं। ये खरीदते, वो खरीदते हैं। एक चीज़ नहीं खरीदी और सोचा की सहजयोग के लिये रख दी। बहुत से लोग सहजयोग में ऐसे ही हैं, जो पूरी समय सहजयोग का विचार करते हैं। वो ये सोचते हैं कि इससे सारे समाज का, सारे सृष्टि का ही परिवर्तन हो जायेगा। और सारे संसार में आनन्द का राज्य आ जायेगा और हम लोग सारे सुख से रहने लगेंगे। और जो कुछ वर्णित किया गया है स्वर, इस संसार में उतर आयेगा | इतने दिव्य और महान कार्य के लिये सब लोग सोचते हैं, कि हम इसमें पूरी तरह से सम्मिलित हो जाये । लेकिन ऐसे लोग जो सहजयोग में हैं, वो बड़े ऊँचे पद पर हैं और वो बड़ी ऊँची स्थिति में रहते हैं। और इसी में आनन्दित रहते हैं कि हम सहजयोग में बैठे हैं। उनका बिझनेस चलता है। उनको पैसे मिलते हैं। उनके सारे प्रश्न छूट जाते हैं। जो प्रॉब्लेम्स है वो हल हो जाते हैं । और उनकी समझ ही नहीं आता कि कोई प्रॉब्लेम ही नहीं रहा। ये प्रॉब्लेम भी छूट गया, वो प्रॉब्लेम भी छूट गया। सब ठीक ठाक है। सो, इस प्रकार का जो हमारे अन्दर जागरण हो जाये और हम सत्य की सृष्टि में उतर जाये तो अपने आप हम देखते हैं कि कितनी रूढियाँ और कितने गलत संस्कार, हमारे अन्दर इतने दिनों से आये, और वो हमारे अन्दर घर कर के बैठे हये हैं। और उससे हमारी प्रगति नहीं हो सकती। चाहे कुछ भी हम सोचते रहे होंगे पिछले इस में, कुछ 6. भी हमारे माँ-बाप ने बताया हो, कुछ भी हमारे समाज ने समझाया हो, हमारे उपर इतना भारी उत्तरदायित्व है, जिम्मेदारी है, रिस्पॉन्सिबिलिटी है कि हम ऐसा समाज बनायें, कि वो शुद्ध, निर्मल हो और उस शुद्ध, निर्मल में हमारी धारणा रहें और उस धर्म में हम स्थित हो। आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद । 7 MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) सारांश (Excerpt) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari आपथा सर्वाना मेटून अल्यंत आनंद झाला . इतके सहजयोगी हैदाबादमध्ये आले आहेत ह्याचों मला क्ल्पनासुध्दा नक्हती- हे हैंद्राबादचे वेशिष्ठय आहे, की सर्व प्रकारचे लोक एकमेकात मिसळले आहेत. आतां आपल्या ला सहजयोगाकडे नञ्या पध्दतीने वकायचे आहे . हें समजणं जावश्यक आहे की सहजयोग सत्यह्वरूप आडे. आणि आपण सत्यनिष्ठ आहोत, त्यामुे आपल्याला असत्याचा त्याग केला पाहोजे नाहो तर आपल्यामध्ये शुध्दता येऊ शक्रत नाही. वास्तविक असल्य डा एक भूम आहे, आणि त्यातून निधण्यासाठी आपल्याला निश्चय केला पाहिजे - अशा धुध्द इवछेमुकेच कुंडालिनी, जी आपल्यामध्ये जागृत आहे, ती आपल्यासमोर अशी स्थिती आणून बेते को क सत य भाणि असत्य यामधोल मेद पल्याला समजतो, आणि फक्त सत्य मिळवण्याची इद्छा आपण कर्रू लागतो - 8. Marathi Translation (Hindi Talk) आफल्या सर्व चुकोव्या धारणांचा त्याग करून केवळ सत्याला आत्मसात केले पाहिजे जशी हो एक घारणा की, गीतेमध्ये म्हटले आहे कों आपलो जात जन्मावर अवलंबून असते . पण हे काही सत्य न्हे कारण व्यासांनी, ज्यांनी गीता लिहोली ते स्वतः एक कोळीणीचे असे प्ुत्र होते की ज्यांच्या पित्याचा सुध्दा पत्ता नव्हता- म ।। त्यामुळे उ्यासमुनो अशी गोष्ट लिहूं शकतच नाहौत. असे म्डटले आहे , " या देवी सर्वपूतेषु जातिरूपेण संस्थिता" म्हणजे सर्वाच्या आंत असलेली त्याची जात म्हणजे, जन्मजात असलेली आवड असते. कोणाला पैशांचा शोध, कोणाला सत्तेचा . सहजयोगामध्ये प्रचम तेच लोक येगार कोणाला परमात्म्याव्या शोधामध्ये रूचि असते जे परमेश्वराता शोधित असतात. आाणि परमचैतन्याला मिळर्वं इविछतात. जेव्हा माणसाचा सहजयोगाकडे ओढा असतो तेव्हा त्याला कधी कधी दुःख डोते की सहजयोग इतका हळूढळ हळूहळू पत्लवित का वाढतों आहे. पण जपल्याला हे समजलं पाहीजे की जी जियंत गोष्ट असते ती होते . नसे परवादया वृक्षाचे हळे हक वाढणे, आणि त्यावर प्रथम दोन फुल्ले आणि नंतर अनेक फुलांचे उगवणे ार सहजयोग पक जिर्वत गोष्ट आहे . यामध्ये आपण कोणावर जबरदस्ती करहे शकत नाहो. आपण कोणालाडी असेच महटले की "तुम्हो पार झालांत", तर तसे होऊ शकत नाही. हे "इहाबै" लागते जाणि जोपयंन्त है होत नाही, तोपर्कत आपण कोणालाही खोर्ट प्रमाणपत्र देऊं शकत नाही. आणि सगळेच लोक पार होतील जसे सांगू शकत नाहो. अनेक कारणांमुळे काही लोक पार होत नाहीत. बहुतांशी लोक असा विचार करतात. की यांसाठी इतकी तपस्या करावी लागत होतो, हिमालयांत जावे लागत होते, तर आतां हे इतके सहज, सरल कसे होऊ शकते? त्यांचा विश्वास बसत नाहीं कारणं त्यांच्यामध्ये आत्मविश्वास नसतो. त्यांना समजू शकत नाही, कीं ही वेळच अशी आहे, जेहा है कार्य सहजच होणार आहे . जेव्हा आत्मसाक्षात्कार मिळतो हे ज्ञात होते आणि परम चैलन्याशी एकातिमकता सापली जाते तेव्हा की आपले सर्व कार्य परमचैतन्यच करते आहे. अणि आपण अक्मामध्ये उतरतो. काडी चिंताच उरत नाहो. पष सहजयोगामध्ये आ्यानंतर, सुरूवातीला कथो, माणूस अ्पदृष्टीने विचार करतो अणि स्वतःला कर्ता समजून राहतो . पण हळूहळू अनुभवांच्या आधाराने त्याता समजते की त्याच्या करण्याने कार्डी होत नाही. आणि विश्वास होतो की परमचैतन्यच सर्व कार्य करते आहे . आणि त्यावेळी आपोआयच सर्व कार्य होत जाते. जर कबी कधी मनाविरुप्व घडले तर परमात्म्याने आपल्याला मवत केली नाही जसा विचार करता नये कुठले कार्य जापल्या - 9. Marathi Translation (Hindi Talk) सहजयोगाची छेन अंगे आाहेत. आणि सहजयोग्याला या दोन्ही अंगांना संभाळले पाडोजे. पहिल्यांदा व्यक्तिीगत ध्यान घारणाव्या योगे आपल्याला आफल्यामधोल दोष जाणून घेतले पाहोजेत. आणि आपली कुठली स्थिती आहे हे जाणून घेतले पाहीने महणजेच जापण उजवीकडील १ राईट साईडेड ।आहोत को डावीकडोल ह लेफ्ट साईडेड १ कुठल्या चकांमध्ये दोष जाहेत. आपल्या कुठल्या छाय्ाचित्रापूढे घ्यान करून सर्व जाऊं शकतात. त्यानंतर ध्यान पारणेने या सर्व दोषांना दूर केले पाहीजे. सहजयोगामध्ये ध्यानधारणेची पप्दत स्यूप सरळ आहे. सकाळी-संध्याकाही दहा पंधरा मिनीटे बसूनसुष्दा ध्यानघारणा होऊं शकते .आपले दोष कादून टाकल्यावर सामूडिकतेमध्ये उतरले पाहिजें. यांसाठी आवश्यक हे की आपले हुदय आपण उघडले पाडीजे- संकुचित प्रवृत्तीची व्यक्ति कथोच सामूहिक होऊ शकत नाही. आपण दुस-यांच्या दोषांकडे पाहतां नये. कारण यामुळें दुस-यांचे सर्व दोष आपल्यामध्ये येतात. आपल्याला दुस-यांचे गुण, चांगुतपणा, सौंदर्य पाहिले पाहीजे- यामुळे आपल्यामधे सॉदर्य येईल आणि दुस यांचे दोपही लुप्त होतील . हे जाणले पाहीजे की दुसरे "स्वयं" पासून . त्यामुळे त्यांच्या दोषांना प्रेमशक्तिने दूर केले पाडीजे. ग्रेम म्हणजेच सत्य आहे आणि सत्य म्हणजेच वेगळे नाहोत किं म प्रेम आहे . जो प्रेमाची शक्ति वापरतो तो लुप उच्चस्तराला पोंडोचतो इदय उपडून प्रेमाने आपल्याला दुस-यांकडे पाहीले पाहीजे. त्यामुके आपण व्यक्तिगत रित्या आणि सामुहिकरित्या प्रगती करतां जो व्यक्ति सामुहिकतेमध्ये उत्तरत नाहो, तिच्यापासून जपुन राहोले पाहिजे कोणत्याही सहजयोग्याची निंदा ऐकणे आपल्या सहजयोगांत पापाप्रमाणेच आहे .आपण किती प्रेमाने बोलू शकतो. आपल्यामध्ये कितो क्षमा-शक्ति आहे, हे आपण पाहिले पाड़ीजे सगळ्या सहजयोग्यांना आपले नातेवाईक समजले पाहीजे- सहजयोगाचे दुसरे अंग आहे, सहजयोगाचे ज्ञान होणे आणि सहजयोगाचा प्रचार सहजयोगामध्ये या ज्ञानाची माहिती पाहीजे, को कोणत्या चकामध्ये दोष असल्यावर हाताच्या किंवा पायाच्या बोटावर पकड येते त्यामुळे कुठले रोग डोऊ शकतात. त्यांचे निवारण कसे केले पाहिजे दुस-यांना आपण कसे ठीक करू शकतो हे सर्व कुंडलिनीचे ज्ञान प्राप्त केले पहिजे . विशेषत: हित्रयांव्यासाठी हे अत्यंत आवश्यक आहे : कारण स्त्री, शक्तिचे स्वरूप आहे. या ज्ञानाव्या योगे सित्रिया सहजमधील मुलांना समजू शकतील. "सहज" मध्ये जन्मलेली मुले अशी कामे को करतात, त्याचा अर्थ काय आहे, बुच्दीने हे घेणे अत्यन्त आवश्यक आाहे आणि दुसरो एक गोष्ट खूप जरूरी आहे ती महणजे सहजयोगाचा प्रचार- जर आपण एका खोलीत बसलां असाल- समजून आणि एकच दरवाजा उघडा आहे आणि दुसरा दरवाजा आपण उपइला नाहो. तर वा-याचा प्रवाह धांबिल ्याप्रमाणेच जर सहजयोग आपण दुस-यांना दिला नाही, त्यांना मदत केलो नाही, त्यांना आत्मसाक्षात्कार दिला 10 Marathi Translation (Hindi Talk) नाही, त्याचा प्रचार केला नाही, तर आपण प्रगति करु शकत नाही कारण वृक्ष जेव्हा वाढतो, तेन्डा त्याच्या फदया वाढल्या पाहिजेत आणि त्या फ्ंदयांव्या छायेमध्ये अनेक लोकांना बसले पाडीजे ही तर वृक्षाची गोष्ट झालो . पण आपण तर बट-वृक्षाप्रमाणे आहांत. त्यामुळे आपल्याला पु्णपणे सहजयोगाच्या प्रचारामध्ये मदत केलो पाहीजे . आफल्याला यांसाठी पूर्णपणे तन मन धन समर्पण केले पाहिजे काहीं असे सुध्वा सहजयोगी आहेत, जे पूर्णविळ सहजयोगाचाच विचार करीत राहतात. आणि एके दिवशी पृथ्वोवर स्वर्गच अवतरेल असा विचार करतात. अशा लोकांचे सर्व प्रश्न सुटतात आणि ते नेहमोच आनंदाच्या स्थितीमध्ये राहतात. आपल्यावर एक महान उत्तरदा- यित्व आहे असा पक समाज निर्माण केला पाहिजे, जो शुध्द निर्मळ आहे . त्यातच आपली धारणा असेल आणि त्याच धर्मामध्ये आपण हि्थित होऊ. आपणां सर्वांना माझे अनंत आशिर्वाद नत। 11 ---------------------- 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page0.txt Kundalini Puja Date 5th February 1990 : Place Hyderabad Puja Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 07 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 08 - 11 Marathi 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आप सब लोगों को मिल के बड़ा आनन्द आया। और मुझे इसकी कल्पना भी नहीं थी कि इतने सहजयोगी हैद्राबाद में हो गये। एक विशेषता हैद्राबाद की है कि यहाँ सब तरह के लोग आपस में मिल गये हैं। जैसे कि हमारे नागपूर में भी। मैंने देखा है कि हिन्दुस्थान के सब ओर के लोग नागपूर में बसे हुए हैं। और इसलिये वहाँ पर लोगों में जो संस्कार है उसमें बड़ा खुलापन है। और एक दूसरे की ओर देखने की दृष्टि भी बहुत खुली हुई है। अब हम लोगों को सहजयोग की ओर नये तरीके से मुड़ना है तो बहत सी बातें ऐसी जान लेनी चाहिये की सहजयोग सत्य स्वरूप है और हम सत्यनिष्ठ हैं। जो कुछ असत्य है, उसे हमें छोड़ना है। कभी भी असत्य का छोड़ना बड़ा कठिन हो जाता है। क्योंकि बहुत देर तक हम किसी असत्य के साथ जुटे रहते हैं, फिर कठिन हो जाता है कि उस असत्य को हम कैसे छोड़ें। लेकिन असत्य हम से चिपका रहेगा, तो हमें शुद्धता नहीं आ सकती। क्योंकि असत्यतता एक भ्रामकता है और उस भ्रम से लड़ने के लिए हमें एक निश्चय कर लेना चाहिए, कि जो भी सत्य होगा उसे हम स्वीकार्य करेंगे और जो असत्य होगा उसे हम छोड़ देंगे। इसके निश्चय से ही, आपको आश्चर्य होगा, कि कुण्डलिनी स्वयं आपके अन्दर , जो कि जागृत हो गयी है, इस कार्य को करेगी और आपके सामने वो स्थिती ला खडी करेगी की आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है और असत्य क्या है। यही नहीं, और आपके अन्दर वो शक्ति आ जाएगी, जिससे | आप सिर्फ सत्य को ही प्राप्त करना चाहेंगे और जितना भी असत्य आपको दिखायी देता, उसे छोड़ देंगे। अब बहुत सी बातें जो सहजयोग में बतायी जाती हैं वो बड़े सोच-समझ कर के और आप लोगों के संस्कारों का विचार कर के, कि जिससे आप किसी तरह से दु:खी न हो समझायी जा सकती हैं । लेकिन इस समझाये जाने में भी हो सकता है, कि आप सोचें कि ये बात ठीक नहीं है, वो बात ठीक नहीं। बहुत से शास्त्रों में जो बातें लिखी गयी हैं वो अधिकतर सत्य है। पर कहीं कहीं ऐसा देखा जाता है, कि बीच बीच में बहुत सी गलत धारणायें भी बढ़ती हैं और इन गलत धारणाओं की वजह से हम उसी को सत्य मान के चल रहे हैं। जैसे कि ज्ञानेश्वरी में ऐसा लिखा गया है, कि जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो आप हवा में उड़ने लग जाते हैं और आप पानी पे चलने लग जाते हैं और आप को बहुत सात समंदर के दूर की बातें दिखायी देती है। अब ये अशक्य है। क्योंकि ग्यानेश्वरजी एक संत थे, महान संत थे। हम लोगों को उस पर सोचना चाहिये, कि संत लोग जनहिताय, जनसुखाय संसार में आ गये। वो इस तरह की बातें मनुष्य को सिखा कर कौनसा सुख देने वाले हैं? उससे कौनसा आराम होने वाला है कि आप हवा में उड़ने लग गये, तो क्या विशेष हो गये? या अगर आप पानी पे चलने लग जाये कि विशेष हो जाये ? लेकिन जिस चीज़ से हमको असल में लाभ होता है, वो है हमारे अन्दर का परिवर्तन और हमारा परमात्मा से संबंध होना। पर उसी ग्यानेश्वरी में लिखा गया है, कि पसायदान, याने ये की वो कहते हैं, कि अब विश्व के जो आत्मा है, विश्वव्यापक जो है उन्होंने खुश होना चाहिए। क्योंकि मैंने वाणी का यज्ञ किया है और अब ऐसा पसायदान दें, ऐसा चैतन्य दें, जिससे सारे संसार में परिवर्तन आ जाये। और सारी बात 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi परिवर्तन की लंबी चौड़ी हो। तो ये समझ लेना चाहिए कि जो पहली बात थी वो किसी ने उसमें भर दी है । क्योंकि ऐसी बात ग्यानेश्वरजी कभी लिख ही नहीं सकते, कि आप हवा में उड़ेंगे, आप पानी पे चलेंगे। इससे क्या लोगों का फायदा होने वाला! वैसे ही हम लोग हवा में उड़ रहे हैं। वैसे ही हम लोग जहाजों में चल रहे हैं। और वैसे ही दूरदर्शन से हम देखते हैं। इसमें कुण्डलिनी की क्या जरूरत है। सो, कुण्डलिनी से जो कार्य होने वाला है, उसको समझना चाहिए और जिस तरह से हर एक ग्रंथ को हम पढ़ते हैं, तो इसमें ये सोचना चाहिए कि इसका विचार जो है, वो सत्य को पकड़ के है या नहीं। इसी कारण, गीता में भी, हर धर्मशास्त्रों में गलत चीजें लिख दी। जैसे कि गीता में लिखा हआ है, कि आपका जन्म जिस जाति में होता है. वही आपकी जाति हो जाती है। कभी हो ही नहीं सकता। क्योंकि जिसने गीता लिखी, वो कौन थे? व्यास। और व्यास किस के लड़के थे आप जानते हैं, कि एक धीवरनी के, एक मछिहारनी के लड़के थे, जिनकी शादी भी नहीं हुई थी। ऐसे की वो बेटे थे, वो है व्यास। वो ऐसा कैसे लिखेंगे, कि आपकी जो जन्मसिद्ध जाति होगी वही जाति हो जाएगी। लेकिन कहा गया है, 'या देवी सर्वभूतेषु, जातिरूपेण संस्थिता', माने सब के अन्दर बसी हुई उसकी जाति है। जाति का मतलब होता है, जो हमारे अन्दर जन्मजात, हमारे अन्दर जो एक तरह का रुझान है, अॅप्टिट्यूड है, हमारे रुझान का, हम किस ओर उलझे हुए हैं। बहुत से लोग हैं जो कि पैसे को खोजते रहते हैं । बहुत से लोग हैं जो कि बड़ी सत्ता को खोजते रहते हैं। लेकिन ऐसे भी बहत से लोग हैं जो कि परमात्मा को खोजते हैं। जिसकी जो जाति, माने जिसका जो रुझान है, जिसका अॅप्टिट्यूड है, वो उसके अन्दर एक बसी हुई अॅप्टिट्यूड है। इसका मतलब ये है, कि सहजयोग में वही लोग आयेंगे, जो परमात्मा को खोजते हैं, जो ब्रह्म को सोचते हैं, और जो इसमें ध्यान देते हैं कि हमें परम को प्राप्त करना है और दुनियाई चीज़ों में क्या करना है। पहले ऐसे ही लोग आयेंगे। प्रथम में ऐसे ही लोग आयेंगे । जो कि वास्तविक में सोचते हैं, कि किसी तरह से परमात्मा को प्राप्त कर ले। इस परमात्मा चीज़ को जान ले या इस आत्मा में हम लोग समा जाए। इस तरह से जो लोग सोचते हैं, किसी भी तरह से, किसी भी पुस्तक को पढ़ने से, या किसी संत-साधुओं के साथ रहने से, किसी गुरुजन के साथ रहने से, जो लोग इस तरह का सोचते है वो पहले सहजयोग में आता है। इसलिये आप देखियेगा कि सहजयोग की प्रगति धीरे होती है। और सब चीजों की प्लास्टिक प्रगती है। हजारों आदमी आप पा लें, कि जो किसी गुरु के पीछे में दौड़ेंगे। लेकिन वो छोड़ देते हैं, उनको कोई लाभ नहीं होता। उनको पैसा देते हैं, किसी तरह से ठीक हो जाते हैं। लेकिन हमको ये सोचना चाहिए कि जो सच्चाई होती है और जो जीवंत चीज़ होती है, वो धीरे- धीरे पनपती है। एकदम ज्यादा नहीं पनप सकती। आपको अगर एक वृक्ष में फूल आने हैं, तो एक- दो ही फूल आते हैं, फिर चार-पाँच फूल आते हैं, फिर धीरे- धीरे उसमें अनेक फूल आ जाते हैं। तो को जब सहजयोग की ओर रुझान हो जाती है और वो सहजयोग में आ जाता है, तो उसको कभी- कभी बड़ा द:ख होता है, और उसे लगता है कि इतने धीरे-धीरे सहजयोग क्यों बढता है? सहजयोग की प्रगती इतने धीरे क्यों होती है? फिर उसकी | मनुष्य वजह आप समझ गये कि ये जीवंत चीज़ है और इसमें किसी पे जबरदस्ती हम नहीं कर सकते। हम किसी को कहें कि आप पार हो गये। तो नहीं हो सकते। ये होना पड़ता है। जब तक ये होना नहीं होगा, जब तक ये बात घटित नहीं 3 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi होगी, तब तक हम नहीं कह सकते, कि ये हो गया। जैसे हमारे साथ एक देवीजी थी, वो गयी अमेरिका। उनका लड़का आया होनोलुलु से तो मुझे कहने लगे कि, 'माँ, इनको आप पार कराओ।' मैंने कहा, 'ये होते नहीं, में क्या करूँ? तुम करा दो पार ।' कहने लगी कि, 'जब आप से नहीं होते तो मैं कैसे करू?' मैंने कहा कि, 'क्या उसको झूठा सर्टिफिकेट दे दें कि ये पार हो गया ?' कहने लगी, 'उससे क्या फायदा होने वाला!' मैंने कहा, 'यही बात है।' इसलिये ये घटित होना पड़ता है और ये सत्य स्वरूप प्राप्त होना चाहिए। अगर ये नहीं हुआ और कोई झूटमूट में ही कहने लगे कि, 'मुझे पार हो गया, बहुत हो गया।' और हर आदमी पार हुआ ऐसा भी नहीं कह सकते। बहुत से लोग नहीं होते हैं। अनेक कारणों से नहीं हो सकते। किसी को कभी ये लगता है कि ऐसे कैसे हो सकता है। ज्यादा तर लोगों में तो ये विचार आता है, कि 'जब तो अब कभी हुआ नहीं, इसके लिये इतनी तपस्या करनी पड़ती थी, हिमालय जाना पड़ता था, ये करना पड़ता था, हमें कैसे होगा?' असल में किसी से कहा जाये कि यहाँ एक हीरा रखा है और आपको मुफ़्त में मिल जायेगा तो सब दौड़ आयेंगे। उसको नहीं छोड़ेंगे। लेकिन जब कहा जाये कि सहज में ही, सस्ते में ही, बगैर पैसे दिये ही आपकी कुण्डलिनी जागृत हो जायेंगी तो लोग विश्वास नहीं करते। क्योंकि अपने आत्मविश्वास में और वो समझ नहीं सकते कि ये समा कौनसी है? ये कौनसी विशेष समा है जिसमें ये चीज़ घटित हो सकती है? तो हमारे लिये क्या सोचना चाहिए कि हम लोग जो हैं आज एक विशेष स्थिति है। हम लोगों ने कुण्डलिनी का अभ्यास नहीं किया हो, उसके बारे में पढ़ा न हो, लिखा न हो और हमारी जागृति हो गयी। और जब जागृति हो गयी है और हमें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, तो ये सोच लेना चाहिए कि अब सब कार्य जो है, वो हम नहीं करने वाले। ये चारों तरफ फैला हुआ परम चैतन्य है, जिस परम चैतन्य ने सारी सृष्टि की रचना की हुई है उसी परम चैतन्य में हम एकाकारिता प्राप्त करते हैं और उस परम चैतन्य का ही ये कार्य है कि वो हमारे सारे कार्य करें। सो, हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं। हम तो अकर्म में ही खड़े हये हैं। जैसे कि आज इसमें (मायक्रोफोन ) कनेक्शन है, आपका मेन से लग गया, तो मैं इसमें बोल रही हूँ तो सुनाई दे रहा है। इसका उपयोग हो रहा है। उसी प्रकार हमारा संबंध उस चारों तरफ फैली हुई परमात्मा की प्रेम की सृष्टि, परम चैतन्य से हो जाता है उस वक्त हमें कोई भी फिक्र करने की या किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं। सारी चिंता वही करते हैं। उस पर भी, मनुष्य जब शुरू शुरू में सहजयोग में आता है, तो वो सोचता है कि चलो ये भी कर के देख लें, चलो वो भी कर के देख लें। बहुत तर्क- वितर्क करता है। और सोचता है कि चलो इससे काम बन जायेगा, ऐसा होना चाहिये और उसी चिंता में रहता है। लेकिन धीरे-धीरे वो समझ लेता है, कि 'मेरा' करने कुछ नहीं होगा। लेकिन अगर आप ऐसा सोचें कि, 'मैं कर के देख लेता हूँ।' तो परमात्मा कहते हैं कि, 'अच्छा, कर लो तुमको जो कुछ करना है, करो।' उसको कहते है अल्पधारिष्ट। अल्पधारिष्ट जो है, वो देखता है कि आप एक अल्पधारिष्ट है, चलो इसको कर लें। पर उसके बाद धीरे-धीरे आप में एक पूर्ण विश्वास आ जाता है, कि परम चैतन्य सब कार्य कर रहे हैं। अपने आप स्वयं परम चैतन्य सारे कार्य को दिखा देते हैं और सब कार्य बनते जाते हैं। उसको स्वीकार्य करना चाहिये। किसी भी चीज़ को ऐसा नहीं कहना चाहिये कि ऐसा क्यों है ? 4 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi अब जैसे बताये कि कभी अगर हमारा रास्ता भूल गये और हम किसी और रास्ते से चलें, यही सोचतें हैं कि किस रास्ते से जाना जरूरी था। इसलिये रास्ता भूल गये और इसलिये हम इस रास्ते पर आ गये। फिर कोई सोचता है, कि इस तरह से क्यों हुआ? ऐसा नहीं होना चाहिये। कभी कभी बहुत सारी बातें हमारे समझ में नहीं आती है। बहुत दिनों बाद समझ में आ जाती है, कि ये होना जरूरी था और इसलिये ये चीज़ घटित हो गयी| तब हम लोग एक तरह से उसमें इतमिनान कर लेते है और यही जान लेते हैं कि जो कुछ भी कहा था वो कितने बढिया तरीके से। तो कोई चीज़ हमारे मन के विरोध में हो जाये तो ये नहीं सोचना चाहिये कि परमात्मा ने हमारी मदद नहीं की। परमात्मा ने तो मदद दी है, कि आपके जो मन की जो इच्छा थी वो ठीक नहीं थी। इसलिये जो सही बात होनी चाहिये वो परमात्मा ने आपके लिये कर दी। क्योंकि परमात्मा से ज़्यादा तो हम सोच नहीं सकते। इस परम चैतन्य के कार्य से हम ज़्यादा कार्य तो कर नहीं सकते। इसलिये उसने जो कार्य किये है और उसने जो व्यवस्था की है और वो जो हमारे लिये कर रहे है और जो कुछ हो रहा है, वो सब चीज़ अत्यंत सुंदर है। और किसी भी परिश्रम के बगैर सहज में ही घटित हो जाती है। मुझे बड़ी ही आनन्द की बात है कि हैद्राबाद में इतने सहजयोगी हो गये। अब सहजयोग में, इसके दो अंग हैं, मेरा ऐसा कहना है कि इन दोनों अंगों को सम्भालना चाहिए । एक अंग ऐसा है, जिसमें ध्यान- धारणा आदि करनी चाहिये। घर में अपने, व्यक्तिगत रूप से ध्यान धारणा जरूर करनी चाहिये । और हमारे अन्दर के दोषों को निकालना है। ध्यान-धारणा की जो हम लोगों की प्रणाली है बहुत ही सरल, सहज है। एक सबेरे दस मिनट, शाम को १०- १५ मिनट बैठने से भी ध्यान-धारणा होती है। पहले अपने अन्दर कौन सा दोष है इसे देख लेना चाहिये। बहुत बार लोग ये नहीं समझते कि समझ लीजिये, कोई राईट साइडेड है, कोई लेफ्ट साइडेड है, तो वो उल्टे इलाज करने शुरू हो जाते हैं। इसलिये पहले जान लेना चाहिये कि हमारी कौनसी दशा है? हमारा कौनसा चक्र पकड़ रहा है ? हम कहाँ हैं? ये सब हम लोग जान सकते हैं। आप जब फोटो की ओर ध्यान करेंगे तो आप जान लेंगे कि आपके इस चक्र में दोष है कि उस चक्र में दोष है। उसको पूरी तरह से समझ कर के, उसके ज्ञान के साथ में, उसको आत्मसुविधा लेना चाहिये। उसको सुलझाने के बाद वो व्यक्तिगत हो गया। फिर आपको सामूहिकता में उतरना चाहिये। और सामूहिकता में उतरते वक्त आपको जान लेना चाहिये, अपना हमें दिल खोल देना चाहिये। जिस आदमी का दिल खुला नहीं है, वो सामूहिकता में उतर नहीं सकता। बहुत से लोग संकुचित प्रवृत्ती के हो गये हैं। कारण उन्होंने वो जाना नहीं कि दुनिया कितनी अच्छी है और कितनी हम उसे अच्छे बना सकते हैं। जिसने अच्छी व्यवस्था देखी ही नहीं, जिसने अच्छा सुन्दर सा संसार देखा ही नहीं, उनको विश्वास ही नहीं होता कि असल संसार में वो भी है। इसलिये वो अपने समुचित हृदय से रहते हैं और दुसरी बात उसमें ऐसी होती है, कि जब हम औरों की ओर नजर करते हैं, तो पहले हमें उनके दोष दिखायी देते हैं। जब हम दूसरों के दोष देखने लगते हैं, तो हमारे अन्दर ज़्यादा दोष आ जाते हैं। लेकिन हम उनके गुण देखें, उनकी अच्छाई देखें और उनकी सुन्दरता को देखें, तो हमारे अन्दर भी वो सुन्दरता आ जायेगी और उस आदमी की जो दोष होते हैं वो भी लुप्त हो जायेंगे| जब दूसरा कोई है ही नहीं, जब वो हमारे ही शरीर का एक अंग मात्र है, तो फिर उसमें दोष देखने से क्या फायदा! दोष को हटाना ही चाहिये। और दोष को हटाने का सब से अच्छा तरीका है कि उसको किसी तरह से सुलझा कर प्रेम 5 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi भाव से ही उसको हटाया जाता है। क्योंकि अपना सारा कार्य जो है, वो प्रेम की शक्ति का है और प्रेम ही सत्य है और सत्य ही प्रेम है। जो प्रेम की शक्ति को इस्तेमाल करेगा , वो बहुत ऊँचा उठ जायेगा। हृदय को खोल कर के प्रेम से आपको दूसरों की ओर देखना है। इस तरह से एक तो ये आपका अंग है, जिसमें आप अपने व्यक्तिगत व्यष्टि में प्रगति करते हैं और एक आप समष्टि में प्रगति करते हैं, जो दूसरों के साथ मेलजोल, प्यार हो जाएं। जिसका मेलजोल दूसरों के साथ नहीं बैठता है तो उसको सोच लेना चाहिये कि वो सहज नहीं । जिसका , जो प्रश्न खड़े कर देता है, जिससे लोगों को तकलीफ़ हो जाये, जिससे आपस में प्रेम न बढ़े, आपस में झगड़ा हो जाये, ऐसा आदमी सहज नहीं और ऐसे आदमी से बच के रहना चाहिये। क्योंकि ऐसा आदमी, एक भी आम अगर खराब हो जाये तो सारे आम को खराब कर सकता है। जो आदमी इधर से उधर लगाते जायेगा, इधर से उधर बात करेगा, इसके खिलाफ़ बोलेगा, उसके खिलाफ़ बोलेगा । इसलिये किसी भी सहजयोगी की निंदा सुनना हमारे सहज में एक पाप सा है। क्योंकि उसको सुनने से हमारे कान खराब हो जाते हैं। और उससे हम उस आदमी के प्रति एक तरह से गलत तरीके से कहना चाहिये कि उसके प्रति हमारा जो विचार होता है, वो ठीक नहीं रहता है। आपको दूसरों से जब व्यवहार करना है, तो देखना चाहिये कि हमारे अन्दर कितना औदार्य है। हम कितनी क्षमा कर सकते हैं, हम कितने प्यार से उसे बोल सकते हैं। उनको हम कितने नज़दीक ले सकते हैं । क्योंकि ये सब हमारे असली रिश्तेदार हैं । बाकी की रिश्तेदारी आप तो जानते ही हैं, कि कैसे होती है। लेकिन जो असली रिश्तेदारी है, वो सहजयोग की है और आपको पता होना चाहिये कि चालीस देशों में आपके भाई- बहन बैठे ह्ये हैं। और जब कभी आप उनसे मिलेंगे तो आपकी तबियत खुश हो जायेगी। दूसरी जो स्थिति है, उसमें है सहजयोग का प्यार होना और सहजयोग का प्रचार होना। ये भी अत्यावश्यक है, विशेषत: औरतों के लिये, स्त्रियों के लिये क्योंकि स्त्री जो है शक्तिस्वरूपिणी है । उसको समझ लेना चाहिये कि कौनसा चक्र पकड़ता है। कौन से पैर की उँगली पकड़ी है। उसको कैसे निवारण करना चाहिये। उसमें क्या दोष है। उसे क्या बिमारियाँ हो सकती है। किस तरह से हम लोगों को ठीक कर सकते हैं। कौन से दोषों से हम जान सकते हैं कि कौन से चक्र पकड़े हुये हैं। उसका निवारण कैसे करना चाहिये। आदि जो कुछ भी ग्यान है, कुण्डलिनी के बारे में ग्यान क्या है? आदि सब बैठ कर के, मन कर के, सोच कर के और आपको जान लेना चाहिये। लेकिन अधिकतर लोग सहजयोग में आने के बाद उसके ओर ध्यान नहीं देते। उनको ग्यान नहीं होता है और सहजयोग | करते रहते हैं। तो उसका ग्यान होना अत्यावश्यक है। क्योंकि ऐसे तो दुनिया में बहत से लोग आये। जो कि हम देखते हैं कि पार हैं। बच्चे हैं बहुत सारे, वो भी ऐसे पैदा होते हैं जो सहजी हैं। लेकिन उनको सहज का ग्यान नहीं । तो माँ लोगों को चाहिये कि वो जाने सहज क्या चीज़ है। उससे वो अपने बच्चों को भी समझ जायेंगे और ये भी समझ जायेंगे की कोई बच्चा जो कि सहज में पैदा हुआ है, वो क्यों ऐसा करता है। उसकी क्या बात है। वो समझने के लिये उसका ग्यान होना बहुत अत्यावश्यक है। जिन लोगों को इसका ग्यान नहीं होता है वो समझ नहीं पाते कि क्या बात कर रहे हैं? क्या कर रहे हैं? औरों पे इसका असर नहीं आता है। इसका इसलिये ग्यान होना बहुत जरूरी है। और जो चौथी चीज़ बहुत जरूरी है, सहजयोग का प्रचार। अगर आप एक कमरे में बैठे है और एक दरवाज़ा 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page6.txt Original Transcript : Hindi है, यहाँ से अब आपको हवा मिल रही है लेकिन अगर दूसरा दरवाज़ा आपने खोला नहीं, तो हवा का खुला सक्क्युलेशन रुकता है। हवा का प्रवाह है वो रुक जाये। इसी तरह से हम लोग जब दूसरों को सहजयोग से प्लावित करते हैं, उनकी मदद करते हैं, उनको रियलाइझेशन देते हैं, उसका प्रचार करते हैं, उसके बारे में बोलते हैं। अपने रिश्तेदारों को बताते हैं, उनको घर बुला-बुला कर, उनको चाय पिला-पिला कर, ये सहजयोग देते हैं। तब, जब तक आप प्रचार नहीं करेंगे, तब तक आपकी प्रगति नहीं हो सकती। क्योंकि आप जानते हैं कि जब पेड़ बढ़ता है उसकी शाखायें बढ़नी चाहिये और शाखाओं के नीचे उसकी छाया में अनेक लोगों को बैठना चाहिये। नहीं तो ऐसे अनेक पेड़ हैं, पर हम लोग तो वटवृक्ष की तरह हैं और इसलिये हमें चाहिये कि इसके प्रचार में पूरी तरह से सहाय्य करें। उसके लिये जो जो जरूरतें होंगी वो हमें करनी चाहिये। उसकी ओर हमें मुड़ना चाहिये। उसके प्रति हमें पूरी तरह से समर्पित होना चाहिये और अपना पूरा समय हम सहजयोग के लिये क्या कर सकते हैं, हम सहजयोग में कौनसा प्रदान कर सकते हैं? इसमें आप जानते हैं कि पैसा नहीं लिया जाता। पर जैसे कि आपको कार्यक्रम करना है, तो मैंने सुना कि एक ही नागोराव साहब सारा पैसा दे रहे हैं, ये बात अच्छी नहीं है। अभी से आप थोड़े थोड़े पैसे इकठ्ठे कर लें और जब हम आयें तो ऐसा होना चाहिये कि सब को उसमें तन, मन धन से, सब तरह से मदद करनी चाहिये। और उसमें आपको मजा आयेगा। ऐसे हम लोग और तो इकट्ठे करते रहते ही हैं। ये खरीदते, वो खरीदते हैं। एक चीज़ नहीं खरीदी और सोचा की सहजयोग के लिये रख दी। बहुत से लोग सहजयोग में ऐसे ही हैं, जो पूरी समय सहजयोग का विचार करते हैं। वो ये सोचते हैं कि इससे सारे समाज का, सारे सृष्टि का ही परिवर्तन हो जायेगा। और सारे संसार में आनन्द का राज्य आ जायेगा और हम लोग सारे सुख से रहने लगेंगे। और जो कुछ वर्णित किया गया है स्वर, इस संसार में उतर आयेगा | इतने दिव्य और महान कार्य के लिये सब लोग सोचते हैं, कि हम इसमें पूरी तरह से सम्मिलित हो जाये । लेकिन ऐसे लोग जो सहजयोग में हैं, वो बड़े ऊँचे पद पर हैं और वो बड़ी ऊँची स्थिति में रहते हैं। और इसी में आनन्दित रहते हैं कि हम सहजयोग में बैठे हैं। उनका बिझनेस चलता है। उनको पैसे मिलते हैं। उनके सारे प्रश्न छूट जाते हैं। जो प्रॉब्लेम्स है वो हल हो जाते हैं । और उनकी समझ ही नहीं आता कि कोई प्रॉब्लेम ही नहीं रहा। ये प्रॉब्लेम भी छूट गया, वो प्रॉब्लेम भी छूट गया। सब ठीक ठाक है। सो, इस प्रकार का जो हमारे अन्दर जागरण हो जाये और हम सत्य की सृष्टि में उतर जाये तो अपने आप हम देखते हैं कि कितनी रूढियाँ और कितने गलत संस्कार, हमारे अन्दर इतने दिनों से आये, और वो हमारे अन्दर घर कर के बैठे हये हैं। और उससे हमारी प्रगति नहीं हो सकती। चाहे कुछ भी हम सोचते रहे होंगे पिछले इस में, कुछ 6. भी हमारे माँ-बाप ने बताया हो, कुछ भी हमारे समाज ने समझाया हो, हमारे उपर इतना भारी उत्तरदायित्व है, जिम्मेदारी है, रिस्पॉन्सिबिलिटी है कि हम ऐसा समाज बनायें, कि वो शुद्ध, निर्मल हो और उस शुद्ध, निर्मल में हमारी धारणा रहें और उस धर्म में हम स्थित हो। आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद । 7 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page7.txt MARATHI TRANSLATION (Hindi Talk) सारांश (Excerpt) Scanned from Marathi Chaitanya Lahari आपथा सर्वाना मेटून अल्यंत आनंद झाला . इतके सहजयोगी हैदाबादमध्ये आले आहेत ह्याचों मला क्ल्पनासुध्दा नक्हती- हे हैंद्राबादचे वेशिष्ठय आहे, की सर्व प्रकारचे लोक एकमेकात मिसळले आहेत. आतां आपल्या ला सहजयोगाकडे नञ्या पध्दतीने वकायचे आहे . हें समजणं जावश्यक आहे की सहजयोग सत्यह्वरूप आडे. आणि आपण सत्यनिष्ठ आहोत, त्यामुे आपल्याला असत्याचा त्याग केला पाहोजे नाहो तर आपल्यामध्ये शुध्दता येऊ शक्रत नाही. वास्तविक असल्य डा एक भूम आहे, आणि त्यातून निधण्यासाठी आपल्याला निश्चय केला पाहिजे - अशा धुध्द इवछेमुकेच कुंडालिनी, जी आपल्यामध्ये जागृत आहे, ती आपल्यासमोर अशी स्थिती आणून बेते को क सत य भाणि असत्य यामधोल मेद पल्याला समजतो, आणि फक्त सत्य मिळवण्याची इद्छा आपण कर्रू लागतो - 8. 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page8.txt Marathi Translation (Hindi Talk) आफल्या सर्व चुकोव्या धारणांचा त्याग करून केवळ सत्याला आत्मसात केले पाहिजे जशी हो एक घारणा की, गीतेमध्ये म्हटले आहे कों आपलो जात जन्मावर अवलंबून असते . पण हे काही सत्य न्हे कारण व्यासांनी, ज्यांनी गीता लिहोली ते स्वतः एक कोळीणीचे असे प्ुत्र होते की ज्यांच्या पित्याचा सुध्दा पत्ता नव्हता- म ।। त्यामुळे उ्यासमुनो अशी गोष्ट लिहूं शकतच नाहौत. असे म्डटले आहे , " या देवी सर्वपूतेषु जातिरूपेण संस्थिता" म्हणजे सर्वाच्या आंत असलेली त्याची जात म्हणजे, जन्मजात असलेली आवड असते. कोणाला पैशांचा शोध, कोणाला सत्तेचा . सहजयोगामध्ये प्रचम तेच लोक येगार कोणाला परमात्म्याव्या शोधामध्ये रूचि असते जे परमेश्वराता शोधित असतात. आाणि परमचैतन्याला मिळर्वं इविछतात. जेव्हा माणसाचा सहजयोगाकडे ओढा असतो तेव्हा त्याला कधी कधी दुःख डोते की सहजयोग इतका हळूढळ हळूहळू पत्लवित का वाढतों आहे. पण जपल्याला हे समजलं पाहीजे की जी जियंत गोष्ट असते ती होते . नसे परवादया वृक्षाचे हळे हक वाढणे, आणि त्यावर प्रथम दोन फुल्ले आणि नंतर अनेक फुलांचे उगवणे ार सहजयोग पक जिर्वत गोष्ट आहे . यामध्ये आपण कोणावर जबरदस्ती करहे शकत नाहो. आपण कोणालाडी असेच महटले की "तुम्हो पार झालांत", तर तसे होऊ शकत नाही. हे "इहाबै" लागते जाणि जोपयंन्त है होत नाही, तोपर्कत आपण कोणालाही खोर्ट प्रमाणपत्र देऊं शकत नाही. आणि सगळेच लोक पार होतील जसे सांगू शकत नाहो. अनेक कारणांमुळे काही लोक पार होत नाहीत. बहुतांशी लोक असा विचार करतात. की यांसाठी इतकी तपस्या करावी लागत होतो, हिमालयांत जावे लागत होते, तर आतां हे इतके सहज, सरल कसे होऊ शकते? त्यांचा विश्वास बसत नाहीं कारणं त्यांच्यामध्ये आत्मविश्वास नसतो. त्यांना समजू शकत नाही, कीं ही वेळच अशी आहे, जेहा है कार्य सहजच होणार आहे . जेव्हा आत्मसाक्षात्कार मिळतो हे ज्ञात होते आणि परम चैलन्याशी एकातिमकता सापली जाते तेव्हा की आपले सर्व कार्य परमचैतन्यच करते आहे. अणि आपण अक्मामध्ये उतरतो. काडी चिंताच उरत नाहो. पष सहजयोगामध्ये आ्यानंतर, सुरूवातीला कथो, माणूस अ्पदृष्टीने विचार करतो अणि स्वतःला कर्ता समजून राहतो . पण हळूहळू अनुभवांच्या आधाराने त्याता समजते की त्याच्या करण्याने कार्डी होत नाही. आणि विश्वास होतो की परमचैतन्यच सर्व कार्य करते आहे . आणि त्यावेळी आपोआयच सर्व कार्य होत जाते. जर कबी कधी मनाविरुप्व घडले तर परमात्म्याने आपल्याला मवत केली नाही जसा विचार करता नये कुठले कार्य जापल्या - 9. 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page9.txt Marathi Translation (Hindi Talk) सहजयोगाची छेन अंगे आाहेत. आणि सहजयोग्याला या दोन्ही अंगांना संभाळले पाडोजे. पहिल्यांदा व्यक्तिीगत ध्यान घारणाव्या योगे आपल्याला आफल्यामधोल दोष जाणून घेतले पाहोजेत. आणि आपली कुठली स्थिती आहे हे जाणून घेतले पाहीने महणजेच जापण उजवीकडील १ राईट साईडेड ।आहोत को डावीकडोल ह लेफ्ट साईडेड १ कुठल्या चकांमध्ये दोष जाहेत. आपल्या कुठल्या छाय्ाचित्रापूढे घ्यान करून सर्व जाऊं शकतात. त्यानंतर ध्यान पारणेने या सर्व दोषांना दूर केले पाहीजे. सहजयोगामध्ये ध्यानधारणेची पप्दत स्यूप सरळ आहे. सकाळी-संध्याकाही दहा पंधरा मिनीटे बसूनसुष्दा ध्यानघारणा होऊं शकते .आपले दोष कादून टाकल्यावर सामूडिकतेमध्ये उतरले पाहिजें. यांसाठी आवश्यक हे की आपले हुदय आपण उघडले पाडीजे- संकुचित प्रवृत्तीची व्यक्ति कथोच सामूहिक होऊ शकत नाही. आपण दुस-यांच्या दोषांकडे पाहतां नये. कारण यामुळें दुस-यांचे सर्व दोष आपल्यामध्ये येतात. आपल्याला दुस-यांचे गुण, चांगुतपणा, सौंदर्य पाहिले पाहीजे- यामुळे आपल्यामधे सॉदर्य येईल आणि दुस यांचे दोपही लुप्त होतील . हे जाणले पाहीजे की दुसरे "स्वयं" पासून . त्यामुळे त्यांच्या दोषांना प्रेमशक्तिने दूर केले पाडीजे. ग्रेम म्हणजेच सत्य आहे आणि सत्य म्हणजेच वेगळे नाहोत किं म प्रेम आहे . जो प्रेमाची शक्ति वापरतो तो लुप उच्चस्तराला पोंडोचतो इदय उपडून प्रेमाने आपल्याला दुस-यांकडे पाहीले पाहीजे. त्यामुके आपण व्यक्तिगत रित्या आणि सामुहिकरित्या प्रगती करतां जो व्यक्ति सामुहिकतेमध्ये उत्तरत नाहो, तिच्यापासून जपुन राहोले पाहिजे कोणत्याही सहजयोग्याची निंदा ऐकणे आपल्या सहजयोगांत पापाप्रमाणेच आहे .आपण किती प्रेमाने बोलू शकतो. आपल्यामध्ये कितो क्षमा-शक्ति आहे, हे आपण पाहिले पाड़ीजे सगळ्या सहजयोग्यांना आपले नातेवाईक समजले पाहीजे- सहजयोगाचे दुसरे अंग आहे, सहजयोगाचे ज्ञान होणे आणि सहजयोगाचा प्रचार सहजयोगामध्ये या ज्ञानाची माहिती पाहीजे, को कोणत्या चकामध्ये दोष असल्यावर हाताच्या किंवा पायाच्या बोटावर पकड येते त्यामुळे कुठले रोग डोऊ शकतात. त्यांचे निवारण कसे केले पाहिजे दुस-यांना आपण कसे ठीक करू शकतो हे सर्व कुंडलिनीचे ज्ञान प्राप्त केले पहिजे . विशेषत: हित्रयांव्यासाठी हे अत्यंत आवश्यक आहे : कारण स्त्री, शक्तिचे स्वरूप आहे. या ज्ञानाव्या योगे सित्रिया सहजमधील मुलांना समजू शकतील. "सहज" मध्ये जन्मलेली मुले अशी कामे को करतात, त्याचा अर्थ काय आहे, बुच्दीने हे घेणे अत्यन्त आवश्यक आाहे आणि दुसरो एक गोष्ट खूप जरूरी आहे ती महणजे सहजयोगाचा प्रचार- जर आपण एका खोलीत बसलां असाल- समजून आणि एकच दरवाजा उघडा आहे आणि दुसरा दरवाजा आपण उपइला नाहो. तर वा-याचा प्रवाह धांबिल ्याप्रमाणेच जर सहजयोग आपण दुस-यांना दिला नाही, त्यांना मदत केलो नाही, त्यांना आत्मसाक्षात्कार दिला 10 19900205_Kundalini Puja_Hyderabad.pdf-page10.txt Marathi Translation (Hindi Talk) नाही, त्याचा प्रचार केला नाही, तर आपण प्रगति करु शकत नाही कारण वृक्ष जेव्हा वाढतो, तेन्डा त्याच्या फदया वाढल्या पाहिजेत आणि त्या फ्ंदयांव्या छायेमध्ये अनेक लोकांना बसले पाडीजे ही तर वृक्षाची गोष्ट झालो . पण आपण तर बट-वृक्षाप्रमाणे आहांत. त्यामुळे आपल्याला पु्णपणे सहजयोगाच्या प्रचारामध्ये मदत केलो पाहीजे . आफल्याला यांसाठी पूर्णपणे तन मन धन समर्पण केले पाहिजे काहीं असे सुध्वा सहजयोगी आहेत, जे पूर्णविळ सहजयोगाचाच विचार करीत राहतात. आणि एके दिवशी पृथ्वोवर स्वर्गच अवतरेल असा विचार करतात. अशा लोकांचे सर्व प्रश्न सुटतात आणि ते नेहमोच आनंदाच्या स्थितीमध्ये राहतात. आपल्यावर एक महान उत्तरदा- यित्व आहे असा पक समाज निर्माण केला पाहिजे, जो शुध्द निर्मळ आहे . त्यातच आपली धारणा असेल आणि त्याच धर्मामध्ये आपण हि्थित होऊ. आपणां सर्वांना माझे अनंत आशिर्वाद नत। 11